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शनिवार, 13 मई 2023

मऊ में क्या खिलेगा कमल! मोदी के करीबी एके शर्मा की प्रतिष्ठा दांव पर!

 उत्तर प्रदेश 

मऊ में भाजपा के नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी अजय कुमार को जीत दिलाने के लिए जितनी मेहनत इस बार 2023 के चुनाव में हुआ है इतनी मेहनत आज तक के इतिहास में कभी नहीं हुआ है। अजय कुमार के प्रत्याशी बनने पर भाजपा में अंदर ही अंदर विरोध तो हुआ, लेकिन अजय कुमार को तीसरी इंजन की सरकार ने जोड़ने के लिए उससे ज्यादा जी तोड़ मेहनत भी हुआ। दलित बेटे के बहाने अजय कुमार को प्रत्याशी बनाने के लिए जहां से राजनीतिक बिसात बिछाई गई थी, वह सभी चेहरे तो अपना नाम जगजाहिर करने में चुप्पी साधे हुए हैं। अजय को टिकट दिलाने और मऊ में कमल खिलाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री और मऊ के निवासी एके शर्मा की प्रारम्भिक राजनीति में प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है!

आईएएस बनने से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री और वर्तमान में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी के साथ उनके टॉपर ऑफिसर अधिकारियों में शुमार रहे एके शर्मा ने नौकरी से इस्तीफा देकर भाजपा का दामन थाम मोदी के प्रति अपनी आस्था जताई थी। वे विधान परिषद सदस्य बनने के बाद योगी के दूसरी पारी की सरकार में ऊर्जा और नगर निकाय मंत्री बन राजनीति की पूर्ण रूपेण कमान संभाल लिए। एके शर्मा भले ही एक मजे हुए और सफल अफसर रहे हों, लेकिन नगर निकाय चुनाव की मऊनाथ भंजन की नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष की सीट उनके जीवन की और उनके राजनीति के शुरू हो रहे जनता के पाठशाला की पहली प्रारम्भिक परीक्षा ही नहीं अग्नि परीक्षा भी है। जिसमें वे तन-मन से लग कर मऊ में कमल खिलाने व अजय को अजेय बनाने की हाड़-तोड़ कोशिश पूरी ईमानदारी से किए जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है।

लेकिन क्या इस मेहनत के बाद भी एके शर्मा मऊ में कमल खिलाने में सफल होंगे या प्राथमिक अनुभवहीन राजनीति में वह फेल साबित होंगे!

अगर यह बाजी एके शर्मा जीतते हैं तो इसका श्रेय एके शर्मा के साथ लेने वालों की फेहरिस्त काफी लम्बी होगी। इसमें बड़े-बड़े वे चेहरे भी शुमार होंगे जो मऊ की राजनीति में स्वयं को सिरमौर मानते हैं। लेकिन क्या अगर इस जी-तोड़ मेहनत के बाद भी अगर भाजपा हार जाती है तो इस हार के जिम्मेदार सिर्फ एके शर्मा होंगे या वह लोग भी सामने आएंगे, जो चेहरा छिपाए बैठे हैं या भाजपा संगठन अपनी जिम्मेदारी लेगा!

एक अदने से भाजपा कार्यकर्ता का कहना है कि परिणाम अगर भाजपा के विपरित आता है तो जिम्मेदार सिर्फ हम सभी हैं और पर्दे के पीछे के चेहरे हैं। एके शर्मा के इस मेहनत पर भी अगर हम लोग कमल नहीं खिला पाएंगे तो भाजपा और मन में बड़े बड़े उम्मीदों को पाल रखे नेता जी लोगों के लिए इससे बड़ी बेशर्मी क्या होगी।

वहीं एक सामान्य नागरिक का कहना है कि जो नेता मऊ में भाजपा की साख बचाने के लिए अपनी पूरी साख दांव पर लगा दिया और उसके बाद भी सड़क पर काम कम सेल्फी में डूबी भाजपा हार जाती है तो फिर शर्मा जी क्या करेंगे।

कहने को तो अगर मऊ की लड़ाई भाजपा के अजय कुमार, बसपा के अरशद जमाल व सपा के आबिद अख्तर के बीच है। लेकिन वास्तविकता की बात करे तो या लड़ाई सिर्फ और सिर्फ भाजपा बनाम बसपा है और आर पार की लड़ाई है। भाजपा की जीत इतनी आसान नहीं लगती। जीत की भाजपा के लोग बता रहे और बसपा के प्रत्याशी अरशद जमाल के कुशल नेता होने और उनकी विकास की पुरानी यादें कहीं न कहीं उन्हें मजबूत कतार में खड़ी की हुई हैं।

ऐसे में कैबिनेट मंत्री एके शर्मा ने मऊ की राजनीति में जो मेहनत किया उसकी जितनी भी तारीफ की जाए कम है। लेकिन अगर परिणाम उनके मन के विपरीत आता है तो उन्हें यह सोचना होगा कि मऊ में किसकी सुननी है और किसकी नहीं सुननी है। क्योंकि यहां के लोग साख फंसाना तो खूब जानते हैं बचाना नहीं और अगर ए के शर्मा को जीत नहीं मिलती है तो एके शर्मा को फिर कभी इस तरह की छोटी चुनाव में अपनी प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगाना चाहिए।

अब दिल थाम कर बैठिए कुछ घंटों में ही आपको पता चल जाएगा की ऊंट किस करवट बैठा है।

अमन सिंह कि रिपोर्ट

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