इस बारे में अपनी टिप्पणी पेश करते हुए जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा, "50 साल पहले अंतर-जातीय विवाह कानूनी नहीं था। जिस क्षण आप परंपरा लाते हैं, संविधान अपने आप में एक परंपरा तोड़ने वाला होता है। क्योंकि जैसे जैसे नई धाराएं, नए नियम आने लगे तो वे परंपराएं अपने आप टूटने लगीं।"
'जीवनसाथी' के प्रयोग पर बहस
इससे पहले वरिष्ठ वकील द्विवेदी ने एक हस्तक्षेपकर्ता के रूप में पेश होकर तर्क दिया कि 'पति और पत्नी' के बजाय 'जीवनसाथी' शब्द का उपयोग करने से विषमलैंगिक लोगों की गरिमा प्रभावित हो सकती है। उन्होंने कहा, "मैं चाहता हूं कि आपका आधिपत्य [विशेष विवाह अधिनियम] की धारा 4 को देखें। जीवनसाथी व्याकरण की दृष्टि से एक लचीला शब्द है। लेकिन अधिनियम के संदर्भ में, पति या पत्नी का अर्थ जीवनसाथी है। इस अधिनियम का संदर्भ विषमलैंगिक है, हर कोई इससे सहमत है।"
कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक पैनल गठित
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा कि केंद्र ने 3 मई को समान लिंग वाले जोड़ों की 'चिंताओं' को दूर करने के लिए प्रशासनिक कदमों का पता लगाने के लिए कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक पैनल गठित करने पर सहमति व्यक्त की। मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया था, "सरकार सकारात्मक है। हमने जो फैसला किया है, उसके लिए एक से अधिक मंत्रालयों के बीच समन्वय की आवश्यकता होगी। इसलिए, कम से कम कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जाएगा।"
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