उत्तरप्रदेश किशोरी से दुष्कर्म व छेड़छाड़ के मामले में फरार आरोपी अधिवक्ता रमेश चंद गुप्ता को सुबह पुलिस ने गिरफ्तार कर अपर जिला जज विशेष न्यायाधीश ईसी एक्ट अजय पाल की कोर्ट में पेश किया.
अदालत में आरोपी अधिवक्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामअवतार मित्तल, अमित दीक्षित, रामकुमार शर्मा ने रिमांड पर दो घंटे तक लंबी बहस की. कहा कि जिन धाराओं में रिमांड बनाया जा रहा है वह धाराएं आरोपी के खिलाफ बनती ही नहीं. अदालत ने बहस के बाद आरोपी अधिवक्ता को 14 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजने के आदेश दिए. पेशी के दौरान रही कचहरी परिसर में भारी भीड़ रही. पुलिस ने आरोपी अधिवक्ता को पेश किया. कचहरी में अधिवक्ता रमेश चंद गुप्ता के आने की खबर फैली तो सैकड़ों अधिवक्ता यहां पहुंच गए. जेल पहुंचते ही अधिवक्ता की तबीयत बिगड़ गई. जेल अफसरों ने जेल चिकित्सक से उपचार कराया. जेलर ने कहा अधिवक्ता को सामान्य बैरक में रखा गया है.
बचाव पक्ष की दलील पॉक्सो के तहत नहीं हुई विवेचना
वरिष्ठ अधिवक्ता रामअवतार मित्तल, अमित दीक्षित, रामकुमार शर्मा ने रिमांड पर बहस करते हुए कहा कि आरोपी का नाम एफआईआर में नहीं है. पीड़िता के भाई ने रिपोर्ट लिखाई थी जो पीड़िता की गुमशुदगी के विषय में लिखवाई थी. उसमें कहीं भी आरोपी का नाम नहीं लिखाया गया है. जब किशोरी की बरामदगी हुई तो उसके 161 के बयान में भी आरोपी अधिवक्ता का नाम नहीं लिया गया. एफआईआर के 24 दिन बाद किशोरी के 164 के बयान में पीड़िता ने अधिवक्ता का नाम लिया, जबकि 164 के बयान भी अपने आप में संदेहपूर्ण हैं, क्योंकि पीड़िता ने अपने बयान में कहा कि उसने 8 फरवरी को अधिवक्ता के यहां कार्य करना शुरू किया, जबकि 8 फरवरी को मेरठ बार एसोसिएशन का चुनाव था और अधिवक्ता रमेश चंद गुप्ता वरिष्ठ उपाध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे थे. ऐसे में ज्वाइनिंग का सवाल पैदा नहीं होता.अधिवक्ता अमित दीक्षित ने तर्क दिया जिस मोबाइल से यह वीडियो बनी है वह मोबाइल पुलिस ने अभी तक बरामद नहीं किया. इसलिए आईटी एक्ट की धाराएं नहीं लग सकती. लड़की ने मेडिकल कराने से मना कर दिया यह भी संदेह उत्पन्न करता है क्योंकि यदि मेडिकल हो जाता तो उसमें दुष्कर्म की पुष्टि नहीं होती. अमित दीक्षित ने तर्क रखा कि पोक्सो के तहत विवेचना नहीं हुई. पॉक्सो के अंतर्गत नाबालिग के बयान उसके परिवार की उपस्थिति में पुलिस अधिकारी सिविल ड्रेस में लेता है इस प्रक्रिया का भी पालन नहीं किया गया. 172 सीआरपीसी का भी पालन नहीं किया गया. अधिवक्ता ने तर्क दिया कि पीड़िता आज तक नारी निकेतन में है और उसके किसी परिवार के व्यक्ति ने उसको कस्टडी में लेने के लिए कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया है.
एक टिप्पणी भेजें