रेप के मामलों में पीड़िता से आरोपी की शादी के बढ़ते चलन पर दिल्ली हाईकोर्ट ने गहरी चिंता जताई है। अदालत का कहना है कि आरोपी अपने खिलाफ दायर केस से बचने के लिए ऐसा कर रहे हैं। लेकिन इस तरह का चलन खतरनाक है।
जस्टिस ने कहा कि बहुत सारे मामले दिख रहे हैं जिनमें आरोपी ने पीड़िता से शादी कर ली। पीड़िता के गर्भवती होने के बाद आरोपी को लगता है कि DNA टेस्ट उसके खिलाफ सबसे बड़ा सबूत बन सकता है। लिहाजा वो राजीनामा करके पीड़िता के साथ विवाह के बंधन में बंध जाते हैं। जब हालात सामान्य होते हैं तो वो फिर से पत्नी को छोड़ देते हैं।
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट के सामने एक ऐसा मामला आया था जिसमें एक मुस्लिम युवक ने अपने ही मजहब की नाबालिग लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाए। लड़की प्रेगनेंट हो गई तो उसके परिजनों ने बखेड़ा खड़ा कर दिया। पुलिस के पास जाकर FIR भी करा दी गई। ऐसे में आरोपी ने बचने के लिए पीड़िता से विवाह करना ही मुनासिब समझा। फिलहाल हाईकोर्ट में आरोपी के वकील ने गुहार लगाई थी कि पीड़िता और उसके मुवक्किल के बीच समझौता हो चुका है। दोनों ने शादी कर ली है और खुशहाल जीवन जी रहे हैं। लिहाजा रेप के केस को खारिज किया जाए।
जस्टिस बोलीं- वो खारिज नहीं करने जा रहीं रेप केस
जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा के सामने जैसे ही ये मामला आया वो आपे से बाहर हो गईं। उनका कहना था कि वो किसी भी सूरत में केस को खारिज करने नहीं जा रही हैं। वारदात के समय आरोपी की उम्र 20 साल की थी जबकि पीड़िता महज 17 साल की। कोर्ट का कहना था कि पीड़िता गर्भवती हो गई तो आरोपी को उससे शादी करनी पड़ गई। अब वो कह रहा है कि उसके खिलाफ जो केस पीड़िता ने दर्ज कराया था वो खारिज किया जाए।
हालांकि आरोपी के वकील का कहना था कि दोनों के बीच शारीरिक संबंध सहमति से बने। कोर्ट का सवाल था कि नाबालिग लड़की की सहमति को सहमति नहीं माना जा सकता। वकील ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला भी दिया, जिसमें लड़की के बालिग होने की उम्र वो समय माना गया है जब उसे पीरिड शुरू होते हैं। हाईकोर्ट का कहना था कि ये मसला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। लिहाजा इस पर वो कोई टिप्पणी नहीं करना चाहतीं। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि पीड़िता गर्भवती हुई थी। वो नाबालिग है लिहाजा आरोपी के खिलाफ दर्ज केस किसी भी तरह से कमजोर नहीं है।
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