उरी पर आतंकी हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक करके हमारे देश के जवानों ने पाकिस्तान और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दिया था. लेकिन बड़ी बात यह है कि इसकी तैयारी उरी हमले के 15 महीने पहले म्यांमार ऑपरेशन के तुरंत बाद ही शुरू हो गई थीं.
दरअसल रिटायर्ड जनरल दलबीर सिंह सुहागने बताया कि 4 जून 2015 को मणिपुर में उग्रवादियों ने घात लगाकर भारतीय सेना के जवानों की हत्या कर दी थी. इसके बाद हमने तुरंत निर्णय लिया कि हमें कार्रवाई करने की जरुरत है. और हमने उग्रवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की.उन्होंने बताया कि उस दिन तत्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख राहील शरीफ़ ने बयान दिया था कि ”पाकिस्तान म्यांमार नहीं है.” शरीफ ने कहा कि कोई भी उनकी सीमा पार नहीं कर सकता और अगर कोई ऐसा करता है तो वे सुनिश्चित करेंगे कि वह वापस न जाएं. पाकिस्तानी आर्मी चीफ की यह बात मेरे मन में बस गई.
सब चाहते थे 24 घंटे में कार्रवाई हो
रिटायर्ड जनरल सुहाग ने बताया कि वह तीन साल से अधिक समय तक उस क्षेत्र में कोर कमांडर रहे थे. उन्होंने इस दौरान इंडियन स्पेशल फोर्सेस की टीमों के साथ काम किया था और उनके टीम लीडरों को व्यक्तिगत रूप से जानते थे. इसलिए उन्हें पता था कि कौन किस क्षेत्र में काम कर सकता है. वहीं 4 जून 2015 को मणिपुर में उग्रवादियों के हमले के बाद हुई हाईलेवल मीटिंग के दौरान सभी ने इस बात पर जोर दिया कि 24 घंटे में कार्रवाई होनी चाहिए.
म्यांमार में सर्जिकल स्ट्राइक
दलबीर सिंह ने कहा कि उन्होंने पूछा, “क्या अधिक जरुरी है? समय या सफलता?” सभी ने कहा कि सफलता सर्वोपरि है. इसलिए मैंने निवेदन किया किया कि समय मुझ पर छोड़ दिया जाए. हालांकि ऐसे ऑपरेशनों की सफलता के लिए दुश्मन को चौंकाना महत्वपूर्ण है. क्योंकि अगर उसे अंदेशा हो गया तो हम हताहत होंगे और कोई सफलता नहीं मिलेगी. इसलिए, टीमों को दो-तीन रातों में ही म्यांमार में विद्रोही मैदानों में जाना पड़ा था. ताकि उन्हें संभलने का मौका न मिले.
पाक आर्मी चीफ को गलत साबित करना था: सुहाग
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ शरीफ की यह बात मेरे मन में बस गई और मैं उसे गलत साबित करना चाहता था. बहरहाल म्यांमार ऑपरेशन के दो हफ्ते बाद, मैं पश्चिमी कमांड गया और कोर कमांडर से कहा कि अगर पश्चिमी सीमा पर कोई घटना होती है तो हमारे देश की सरकार और लोग पाकिस्तान में भी हमसे इसी तरह की कार्रवाई की उम्मीद करेंगे. मैंने कहा कि हमें इसके लिए पहले से ही तैयारी करने की जरूरत है. क्योंकि कोई नहीं जानता कि अगली घटना कब हो जाए.
ट्रेनिंग कैंप और लॉन्चपैड्स की खुफिया जानकारी
उरी पर आतंकी हमला 18 सितंबर 2016 को हुआ था. इसलिए, हमें तैयारी के लिए 15 महीने मिले थे. क्योंकि म्यांमार ऑपरेशन के तुरंत बाद तैयारियां शुरू हो गई थीं. कई टारगेट का चयन किया गया और हरएक के लिए सैनिक तैनात किये गये. हमारे पास ट्रेनिंग कैंप और लॉन्चपैड्स की खुफिया जानकारी थी और हमने उसे अपग्रेड करना शुरू कर दिया. हम उनकी तस्वीरें हासिल करने की हद तक भी गए. और इन सबके बाद आखिरकार टारगेट लॉक किए गए और ट्रेनिंग दिया गया. हमारी टीमें जितनी तैयार थीं, उससे अधिक कोई भी तैयार नहीं हो सकता था. वे सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर आश्वस्त थे और हरी झंडी का इंतजार कर रहे थे.
18 सितंबर 2016 को उरी में हमला
इसके बाद 18 सितंबर 2016 को जब उरी में आतंकियों ने ब्रिगेड मुख्यालय पर हमला कर हमारे 19 जवानों को मार डाला. घटना के बारे में मुझे सुबह 5 बजे फोन आया. मैं आधे घंटे में ही उरी के लिए निकल पड़ा. मैंने साइट देखी और वहां सेना के कोर कमांडर से कहा कि पाकिस्तान पर हमला करने का समय आ गया है. सरकार की मंजूरी मिलते ही हम इसको अंजाम देंगे.
हाई अलर्ट पर थी पाकिस्तानी सेना
जनरल सुहाग ने बताया कि 22 सितंबर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक होनी थी और 24 सितंबर को एक पाकिस्तानी मंत्री को भाषण देना था. फिर 25 सितंबर को हमारे विदेश मंत्री को भाषण देना था. तो विचार यह था कि हम इसे यूएनएससी कार्यक्रम से पहले नहीं कर सकते और हमें इसे जल्द से जल्द ख़त्म भी करना होगा. हम यह भी जानते थे कि पाकिस्तानी सेना हाई अलर्ट पर थी. क्योंकि किसी भी घटना के बाद वे हमसे जवाबी कार्रवाई की उम्मीद करते हैं.
28-29 सितंबर की रात को सर्जिकल स्ट्राइक
इसलिए इंतजार करना बेहतर था, ताकि पाकिस्तान आर्मी अपनी सतर्कता कम करे और फिर हम इसके लिए आगे बढ़ें. ये सोचकर हमने इंतजार करने का फैसला किया और 10 दिन बाद यानी 28 सितंबर और 29 सितंबर की रात को सर्जिकल स्ट्राइक की. जनरल ने बताया कि हमारा उद्देश्य ज्यादा टारगेट को निशाना बनाना और ज्यादा से ज्यादा आतंकियों को मारना था. इस दौरान एक रात में हमने लगभग 250-300 किमी की सीमा पार कर ली. पाकिस्तानी सेना आश्चर्यचकित रह गई और उसे पता नहीं चला कि आगे क्या होने वाला है. हमले के बाद हमारे सैनिकों को निकालने के लिए यह आवश्यक था. स्ट्राइक ऑपरेशन में यह सबसे कठिन हिस्सा होता है और हम इसमें सफल रहे.
उरी आतंकी हमले के बाद प्रतिक्रिया देने के लिए हमारे पास कई विकल्प थे. एक तो हम उन टारगेट को मार सकते थे जो हवाई सीमा के भीतर थे. इसमें ग्राउंड विकल्प सबसे कठिन था क्योंकि पोस्ट एक-दूसरे पर नज़र रखते हैं और उनके बीच से गुजरना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है, खासकर ऑपरेशन के बाद वापस आते समय.
आतंकियों के मन में असुरक्षा की भावना
लेकिन ऑप्शन यही था, क्योंकि पाकिस्तानी सेना प्रमुख शरीफ का बयान था कि कोई भी बॉर्डर पार करके जिंदा वापस नहीं आ सकता. मैं उन्हें बताना चाहता था कि हम उस पार जा सकते हैं, उन पर हमला कर सकते हैं, और वापस भी आ सकते हैं. इस तरह, हम उनके मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर देंगे कि वे अपने ही देश में सुरक्षित नहीं हैं, कि उन्हें हमसे डरना चाहिए. उनके मन में किसी भी समय हमला होने का डर होना चाहिए. और यही कारण था कि ग्राउंड विकल्प चुना गया.
सर्जिकल स्ट्राइक पर उठे सवाल
जनरल सुहाग ने कहा कि जब सर्जिकल स्ट्राइक सफल हो गया तो कुछ लोगों को संदेह हुआ कि क्या हमने वास्तव में ऐसा किया है. कुछ लोगों ने सबूत भी मांगा. उस दौरान मैंने कहा कि किसी को भी हमारे सशस्त्र बलों के खिलाफ कोई संदेह नहीं होना चाहिए. जब हम कुछ कहते हैं, तो उसका मतलब होता है, लेकिन अगर किसी को संदेह है तो मैंने कहा कि उन्हें साउथ ब्लॉक स्थित सेना मुख्यालय आना चाहिए और मैं उन्हें सबूत दिखाऊंगा.
जवानों की सुरक्षा से समझौता नहीं
हालांकि, सबूत जारी करना संभव नहीं था क्योंकि आईएसआई और पाकिस्तानी सेना इस बात की जानकारी हासिल कर रही होगी कि हमने यह कैसे किया. यह ऑपरेशन अपनी तरह का पहला ऑपरेशन हो सकता है लेकिन यह आखिरी बार नहीं है और हम इसे दोबारा भी कर सकते हैं. इसलिए, हम साक्ष्य साझा नहीं कर सके. दूसरे, अगर स्पेशल फोर्स के जवानों के चेहरे सामने आ गए तो उनकी सुरक्षा से समझौता हो जाएगा. और तीसरा, अगर सैनिकों को पता है कि उनकी रिकॉर्डिंग हो रही है और वे टीवी पर हो सकते हैं, तो इससे उनके कार्यों पर असर पड़ेगा और मिशन विफल हो सकता है.
सर्जिकल स्ट्राइक की वीडियो रिकॉर्डिंग
2018 में, जब मैं यूके होते हुए अमेरिका जा रहा था, मुझे एक पत्रकार का फोन आया. वह मुझसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता था. बाद में मुझे पता चला कि उसने मुझे टीवी पर लाइव दिखाया था, जिसके बारे में मुझे तब तक पता नहीं था. उन्होंने पूछा कि क्या हमलों को रिकॉर्ड करने के लिए टीमों को वीडियो कैमरे देने का मतलब यह है कि लोग संदेह कर सकते हैं और सबूत मांग सकते हैं.
इंडियन स्पेशल फोर्सेस सर्वश्रेष्ठ
मैंने स्पष्ट किया कि किसी भी टीम के साथ एक भी वीडियो कैमरा नहीं भेजा गया क्योंकि किसी ऑपरेशन पर किसी सैनिक को वीडियो कैमरा देने का कोई सवाल ही नहीं था. हमारे हमारे द्वारा उपयोग किए जाने वाले सोर्स में कैमरा था और इस तरह हमें ये रिकॉर्डिंग्स मिलीं. जनरल सुहाग ने फिर कहा कि इंडियन स्पेशल फोर्सेस दुनिया में किसी भी बल की तुलना में सर्वश्रेष्ठ हैं. मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि वे भविष्य में और भी बेहतर प्रदर्शन करेंगे.
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