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शुक्रवार, 10 मई 2024

लोकसभा चुनाव 2024: उपेंद्र कुशवाहा को कितनी चुनौती दे पाएँगे भोजपुरी स्टार पवन सिंह?

 


बिहार की काराकाट लोकसभा सीट पर भोजपुरी अभिनेता और गायक पवन सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं.

उनकी उम्मीदवारी से इस सीट पर मुक़ाबला काफ़ी रोचक हो गया है.

पहले बीजेपी ने पवन सिंह को पश्चिम बंगाल के आसनसोल सीट से उम्मीदवार बनाया था.

लेकिन टीएमसी ने उनके गानों में बंगाली महिलाओं को गलत तरीके से दिखाने का दावा करते हुए उनकी उम्मीदवारी का विरोध करना शुरू कर दिया.

विवाद बढ़ा तो पवन सिंह ने ख़ुद यहाँ से उम्मीदवारी छोड़ने का फ़ैसला किया.

अब काराकाट के चुनावी मैदान में पवन सिंह के सामने एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा हैं. माना जा रहा है कि इन दोनों के बीच वोटों का बँटवारा होने से यहाँ इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार राजा राम सिंह को फ़ायदा हो सकता है.

इस सीट के चुनावी समीकरणों को समझने के लिए बीबीसी की टीम काराकाट पहुँची.

जब हम काराकाट लोकसभा इलाक़े में पहुँचे, तो पवन सिंह के पीछे बड़ी संख्या में युवा समर्थक और चाहने वाले नज़र आए.

उपेंद्र कुशवाहा इलाक़े के स्थानीय नेताओं के साथ बैठक कर रणनीति तैयार करते दिखे, तो सीपीआई (एमएल) के राजा राम सिंह ग्रामीण इलाक़ों में जनसंपर्क करते दिखे.

बिहार में एनडीए के दलों के बीच सीटों की साझेदारी में काराकाट लोकसभा सीट राष्ट्रीय लोक मोर्चा के उपेंद्र कुशवाहा के हिस्से में आई है.

उपेंद्र कुशवाहा साल 2014 में इस सीट से चुनाव जीत चुके हैं. हालाँकि साल 2019 में महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर काराकाट सीट से वे हार गए थे.

बिहार में विपक्षी दलों में काराकाट सीट सीपीआई (एमएल) के हिस्से में आई है. सीपीआई (एमएल) ने फिर राजा राम सिंह को चुनाव मैदान में उतारा है.

वो पिछले तीन चुनावों से लगातार इस सीट पर हार का सामना कर रहे हैं. हालाँकि इस बार उनकी दावेदारी मज़बूत मानी जा रही है.

काराकाट लोकसभा सीट साल 2008 में परिसीमन के बाद बनी है. इस सीट में बिहार के औरंगाबाद और रोहतास ज़िले के तीन-तीन विधानसभा क्षेत्र आते हैं.

पवन सिंह की दावेदारी कितनी बड़ी है


भोजपुरी फ़िल्म स्टार पवन सिंह इस इलाक़े के स्थानीय उम्मीदवार माने जाते हैं. उनके साथ न केवल अगड़ी जाति के समर्थक बड़ी संख्या में नज़र आते हैं बल्कि युवाओं के बीच भी इलाक़े में उनकी लोकप्रियता दिखती है.

पवन सिंह दावा करते हैं कि उन्होंने 12-14 साल से बीजेपी की सेवा की है और साल 2019 के चुनाव में भी उन्हें बीजेपी ने पश्चिम बंगाल के हावड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को कहा था लेकिन बाद में टिकट नहीं दिया गया.

इस बार समर्थकों के कहने पर वो काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं.

पवन सिंह कहते हैं, "जिससे भी मेरी बात हो रही है सब कहते हैं कि समय आने पर लोग यहाँ आते हैं और फिर दिखते नहीं हैं. काराकाट में कोई विकास ही नहीं हुआ है. मैं राजनीति का नया खिलाड़ी हूँ, मुझे मौक़ा मिला और कुछ नहीं किया तो लोग शिकायत कर सकते हैं."

पवन सिंह विकास को लेकर शिकायत तब कर रहे हैं, जबकि पिछले 15 साल से इस सीट पर एनडीए के सांसद रहे हैं, पिछले 10 साल से केंद्र में मोदी की सरकार है और पिछले दो दशक में बिहार में ज़्यादातर समय के लिए एनडीए की सरकार रही है.

काराकाट लोकसभा सीट पर यादव वोटरों का बड़ा असर माना जाता है.

इसके अलावा इस सीट पर कुशवाहा, कुर्मी, राजपूत और वैश्य वोटरों की तादाद भी काफ़ी है.

स्थानीय युवा वोटर गौतम कुमार कहते हैं, "काराकाट में केवल विकास का मुद्दा है. पवन सिंह निर्दलीय लड़ रहे हैं. उपेंद्र कुशवाहा सांसद बनकर दिल्ली चले जाते हैं. पवन सिंह स्थानीय हैं, जब भी हम उन्हें बुलाते हैं वो आ जाते हैं."

क्या उपेंद्र कुशवाहा के लिए हो सकती है मुश्किल


काराकाट सीट पर उपेंद्र कुशवाहा की सबसे बड़ी ताक़त उनका एनडीए का उम्मीदवार होना दिखता है. लेकिन यहाँ एनडीए के दलों और उनके कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस की स्थिति भी रही है.

बीजेपी के स्थानीय नेता बिकू त्रिपाठी कहते हैं, "शुरुआत में यहाँ माहौल थोड़ा बिखरा हुआ था. यह सीट उपेंद्र कुशवाहा जी को दी गई है, जो सनातन के साथ हैं. पवन सिंह का ग्राफ़ भले ही बढ़ा हुआ दिखता है, लेकिन दर्शक और समर्थक में अंतर होता है. कोई भी स्टार बिना किसी पार्टी के नहीं जीत पाता है, यह भी समझना ज़रूरी है."

स्थानीय लोगों का मानना है कि उपेंद्र कुशवाहा भी बार-बार अपना पाला बदलते हैं और वो पहले राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी काफ़ी हमलावर रहे हैं.

इस वजह से भी उन्हें इस सीट पर सामंजस्य बैठाने में मुश्किल आ सकती है.

गोह इलाक़े के मुन्ना कुमार राय के मुताबिक़ उन्हें माहौल बीजेपी का दिखता है, लेकिन लोगों के मन में विकास को लेकर बहुत किंतु और परंतु भी है. इसलिए फ़िलहाल चुनावी लिहाज से कुछ भी स्पष्ट नहीं दिख रहा है.

हालाँकि उपेंद्र कुशवाहा दावा करते हैं, "मुझे इस बार मुक़ाबला ज़्यादा आसान दिख रहा है क्योंकि मोदी जी ने 10 साल में सबके लिए काम किया है. राज्य सरकार का भी काम है. लोग चाहते हैं कि मोदी जी फिर से प्रधानमंत्री बनें."

बिहार में विपक्ष के महंगाई और रोज़गार के मुद्दे पर उपेंद्र कुशवाहा दावा करते हैं कि मोदी सरकार ने महंगाई को नियंत्रण में रखने की पूरी कोशिश की है और रोज़गार की ज़रूरत केवल नौकरी से पूरी नहीं की जा सकती, इसलिए केंद्र सरकार रोज़गार के मौक़े तैयार करने में भी लगी हुई है.

पवन सिंह की उम्मीदवारी पर उपेंद्र कुशवाहा कहते हैं, "जिनकी इच्छा है, वो चुनाव लड़ सकते हैं. संविधान सबको मौक़ा देता है लेकिन अभी इंतज़ार कीजिए. नामांकन पत्रों की जाँच और नाम वापसी तक कितने लोग उम्मीदवार रह जाएँगे, अभी यह तय नहीं है."

काराकाट लोकसभा सीट को लेकर एक बात यह भी मानी जाता है कि अगड़ी जाति और एनडीए के वोटों का बँटवारा पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच होने से इसका सीधा लाभ महागठबंधन को हो सकता है.

सीपीआई (एमएल) की उम्मीद

काराकाट सीट का इतिहास एनडीए के पक्ष में दिखता है, तो साल 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव का परिणाम यहाँ पूरी तरह विपक्ष को समर्थन करता दिखता है.

काराकाट सीट से साल 2009 में जनता दल यूनाइटेड के महाबली सिंह चुनाव जीते थे. साल 2019 में भी इस सीट से महाबली सिंह की जीत हुई थी.

लेकिन इस बार जेडीयू को एनडीए के दलों के बीच साझेदारी में अपनी यह सीट छोड़नी पड़ी है.

साल 2020 के विधानसभा चुनावों में काराकाट लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली सभी छह विधानसभा सीटों पर विपक्षी दलों ने जीत दर्ज की थी.

इनमें रोहतास ज़िले की काराकाट सीट पर सीपीआई (एमएल) के अरुण सिंह की जीत हुई थी.

जबकि अन्य सभी पाँच सीटों पर राष्ट्रीय जनता दल ने जीत दर्ज की थी. जिसमें रोहतास की नोखा और डेहरी विधानसभा सीट, जबकि औरंगाबाद ज़िले की गोह, ओबरा और नबीनगर विधानसभा सीट शामिल हैं.

सीपीआई (एमएल) के उम्मीदवार राजा राम सिंह दावा करते हैं, "इस बार मैं महागठबंधन का उम्मीदवार हूँ. कोई इस मौक़े को गँवाना नहीं चाहता. मौजूदा हालात में गाँव की जनता मान रही है कि मोदी जी अगर रहें, तो लोकतंत्र नहीं बचेगा, संविधान नहीं बचेगा. गाँव के लोगों को लगता है सीपीआई (एमएल) लगातार ग़रीबों के साथ है."

राजा राम सिंह मानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा और पवन सिंह के बीच वोटों का बँटवारा होगा, इसके अलावा एनडीए के कई समर्थक खेती, किसानी और रोज़गार के मुद्दे पर विपक्ष के साथ खड़े हैं. लोगों ने आंबेडकर के संविधान को पढ़ लिया है और इसे बचाना है.

स्थानीय बुज़ुर्ग मुंशी प्रसाद कहते हैं, "माहौल अमीरी और ग़रीबी पर चलता है. इस साल वोटर का कुछ पता नहीं लग रहा है. माहौल के बारे में कुछ समझ में नहीं आ रहा है. कुछ महंगाई पर बोलते हैं, कुछ अन्य मुद्दे बताते हैं."

क्या कहते हैं लोग

काराकाट सीट के अलग-अलग इलाक़ों में लोगों से बात करने पर यहाँ त्रिकोणीय मुक़ाबले की पूरी संभावना दिखती है.

स्थानीय युवक राजू कुमार दावा करते हैं कि काराकाट सीट पर राजा राम सिंह, पवन सिंह और उपेंद्र कुशवाहा के बीच त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा.

राजू के मुताबिक़ इलाक़े में रोज़गार, महंगाई और विकास बड़े मुद्दे हैं.

यहाँ के लोग काराकाट लोकसभा की अर्थव्यवस्था में सोन नदी के बालू का बड़ा योगदान बताते हैं. यह धान की फ़सल का भी मशहूर इलाक़ा है.

डेहरी के लोगों की शिकायत है कि इलाक़े में रोज़गार के साधन और विकास की बड़ी ज़रूरत है.

स्थानीय युवा जावेद अख़्तर कहते हैं, "यहाँ चुनाव में शिक्षा, रोज़गार, विकास यही सब मुद्दे हैं. सामने आप टूटे हुए पुल को देख रहे हैं, एक साल से बंद है. इसमें बीच में दरार आ गई है. यह पटना, आरा, विक्रमगंज जाने का मुख्य मार्ग है."

डेहरी इलाक़े में सोन नदी के पास बना यह रेलवे का एक आरओबी (रोड ओवर ब्रिज) है, जो फ़िलहाल इस्तेमाल में नहीं है.

लोगों का आरोप है कि एक साल से इसे ठीक नहीं किया गया है, जिसकी वजह से रेलवे लाइन पार करने के लिए वाहनों को क़रीब छह किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है.

इसी इलाक़े के शेषनाथ यादव ख़ुद ऑटो रिक्शा चलाते हैं. उनके गले पर आरजेडी का अंगोछा बताता है कि वो आरजेडी के समर्थक हैं और वो भी रेलवे लाइन के ऊपर बने आरओबी के बंद होने से नाराज़ हैं.

शेषनाथ दावा करते हैं कि काराकाट सीट पर मुक़ाबला राजा राम सिंह और पवन सिंह के बीच है और यहाँ से इस बार राजा राम सिंह के जीतने की संभावना ज़्यादा है, क्योंकि वो महागठबंधन के उम्मीदवार हैं.

काराकाट सीट पर क़रीब 19 लाख़ वोटर हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में यहाँ 50 फ़ीसदी से भी कम वोटिंग हुई थी. यहाँ लोकसभा चुनावों के सातवें और अंतिम चरण में 1 जून को वोट डाले जाएँगे.

ज़ाहिर है इस सीट पर चुनाव प्रचार और ज़्यादा से ज़्यादा वोटरों को अपनी तरफ़ खींचने के लिए हर उम्मीदवार के पास काफ़ी वक़्त है, जो तय करेगा कि यह सीट किसके हिस्से में आ सकती है.

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