- 'वैवाहिक जीवन में कटुता,दंपति पर क्रूरता ... ' , 25 साल पुराने तलाक केस पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी | सच्चाईयाँ न्यूज़

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2023

'वैवाहिक जीवन में कटुता,दंपति पर क्रूरता ... ' , 25 साल पुराने तलाक केस पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि समय के साथ वैवाहिक संबंधों में आई कटुता के साथ दिखावे के लिए टूटे हुए संबंधों पर सबकुछ ठीक होने का मुखौटा चढ़ाकर दिखाना, पति व पत्नी दोनों के साथ क्रूरता है.सुप्रीम कोर्ट ने पति द्वारा पत्नी के खिलाफ लगाए गए क्रूरता के आरोप और हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली उसकी अपील को स्वीकार करते हुए यह बात कही. अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि दंपति पिछले 25 वर्षों में एक साथ नहीं रहे जिस दौरान पत्नी ने उसके खिलाफ कई आपराधिक शिकायतें दर्ज कीं. इसमें कहा गया है कि अदालतों के समक्ष वैवाहिक मामले किसी अन्य के विपरीत एक अलग चुनौती पेश करते हैं, क्योंकि वे भावनाओं, दोषों और कमजोरियों के साथ मानवीय संबंधों को शामिल करते हैं.

शीर्ष अदालत ने कहा कि हर मामले में पति या पत्नी के "क्रूरता" या निंदनीय आचरण के कृत्य को इंगित करना संभव नहीं है, और रिश्ते की प्रकृति, पक्षों का एक-दूसरे के प्रति सामान्य व्यवहार, या दोनों के बीच लंबे समय तक अलगाव प्रासंगिक कारक हैं जिन पर अदालत को विचार करना चाहिए. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने कहा, 'एक विवाह जो अपरिवर्तनीय रूप से टूट गया है, हमारी राय में दोनों पक्षों के लिए क्रूरता है, क्योंकि ऐसे रिश्ते में प्रत्येक पक्ष दूसरे के साथ क्रूरता का व्यवहार कर रहा है. इसलिए यह अधिनियम (हिंदू विवाह अधिनियम) की धारा 13 (1) (आईए) के तहत विवाह के विघटन का एक आधार है. पीठ ने कहा, 'हमारी राय में, एक वैवाहिक संबंध जो वर्षों से केवल अधिक कड़वा और कटु हो गया है, दोनों पक्षों पर क्रूरता के अलावा कुछ नहीं करता है. इस टूटी हुई शादी के मुखौटे को जीवित रखना दोनों पक्षों के साथ अन्याय करना होगा.'शीर्ष अदालत ने दिल्ली उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ पति की अपील पर यह फैसला सुनाया. उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया था कि उसकी पत्नी द्वारा उसके खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करना क्रूरता नहीं है. न्यायालय ने इस बात को संज्ञान में लिया कि पति-पत्नी 25 साल से अलग रह रहे थे. शीर्ष अदालत ने निचली अदालत के पति को तलाक की डिक्री देने के आदेश को बरकरार रखा और उच्च न्यायालय के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि "उनकी शादी भंग हो जाएगी." न्यायालय ने पति को चार सप्ताह में स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में अपनी पत्नी को 30 लाख रुपये देने का निर्देश दिया.

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