- ममता की मनमानी : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का निरादर | सच्चाईयाँ न्यूज़

बुधवार, 10 मई 2023

ममता की मनमानी : सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का निरादर

 बहुचर्चित फिल्म द केरल स्टोरी पर पाबंदी लगाकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वही काम किया, जो इस फिल्म का विरोध करने वालों ने हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाकर करने की कोशिश की थी। वे तो बुरी तरह नाकाम रहे, लेकिन बंगाल में ममता ने उनका काम कर दिया। उनका फैसला वोट बैंक की सस्ती राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने इस फिल्म को प्रतिबंधित कर कट्टरपंथियों को खुश करने का ही काम किया है, लेकिन यह मनमाना फैसला है। यही कारण है कि फिल्म के निर्माता ने अदालत जाने की बात कही है।

पता नहीं अदालत से उन्हें राहत मिलती है या नहीं, लेकिन इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि जब कुछ राज्यों में इस फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग की जा रही है और मध्य प्रदेश में तो कर भी दी गई है, तब बंगाल में उसे प्रतिबंधित कर दिया गया।कोई फिल्म कैसी भी हो, यदि वह सेंसर बोर्ड से स्वीकृत है और उस पर उठाई गई आपत्तियों को उच्च न्यायालयों के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने भी खारिज कर दिया हो, तो उसे प्रतिबंधित करना एक तरह की मनमानी ही है।

ममता बनर्जी ने द केरल स्टोरी को अपने राज्य में प्रतिबंधित करने का फैसला करते हुए कहा कि यह एक विकृत कहानी है और इसे केरल को बदनाम करने के लिए बनाया गया है। पहली बात तो यही उठती है कि क्या उन्होंने फिल्म देखी है? प्रश्न यह भी है कि क्या वह सुप्रीम कोर्ट से भी ऊपर हैं? क्या उनका फैसला सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का निरादर नहीं?

जहां तक उनकी यह बात है कि इस फिल्म को केरल को बदनाम करने के लिए बनाया गया है तो वहां की सरकार ने तो उसे प्रतिबंधित नहीं किया। क्या उन्हें केरल के हितों की चिंता वहां की सरकार से भी अधिक है? स्पष्ट है कि उन्होंने इसकी जानबूझकर अनदेखी की कि केरल हाई कोर्ट ने कहा है कि यह फिल्म अगर किसी को खलनायक रूप में दिखाती है तो बर्बर आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट को और फिल्म से किसी को आपत्ति हो सकती है तो इसी संगठन को। ममता सरकार के फैसले से तो इस खूंखार आतंकी संगठन से हमदर्दी रखने वालों का ही दुस्साहस बढ़ेगा। इसी के साथ उनका भी दुस्साहस बढ़ेगा, जो छल-कपट से मतांतरण कराने का काम कर रहे हैं। द केरल स्टोरी में ऐसे तत्वों को भी उजागर किया गया है।

ममता कुछ भी कहें, यह एक हकीकत है कि देश में ऐसे तत्व सक्रिय हैं, जो छल-कपट से मतांतरण कराने में लगे हुए हैं। कोई फिल्म कैसी है, यह तय करना सरकारों का काम नहीं है। सरकारें सेंसर बोर्ड का काम अपने हाथ में नहीं ले सकतीं। भले ही ममता के फैसले के कारण बंगाल के लोग द केरल स्टोरी देखने से वंचित रहें, लेकिन अन्यत्र उसके प्रति आकर्षण बढ़ना तय है।

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