सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिए अपने आदेश से स्पष्ट कर दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत समय से दाखिल चार्जशीट को वैध मान्यता नहीं मिलने भर से किसी भी आरोपी को स्वत: जमानत पर रिहाई का आधार नहीं मिल जाता.सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने पांच अभियुक्तों की साझा साजिश में शामिल रहने के मामले में दाखिल अर्जी पर सुनवाई के दौरान ये साफ कहा कि चार्ज शीट को समुचित प्राधिकार से मंजूरी लेनी जरूरी है या नहीं ये अपराध पर संज्ञान लेते वक्त ही विचार किया जा सकता है. उसे अभियोजन प्रक्रिया का हिस्सा भी नहीं नहीं माना जा सकता.
लिहाजा इस दलील में कोई दम नहीं कि समुचित प्राधिकरण की बिना मंजूरी के दाखिल चार्ज शीट वैध चार्जशीट नहीं मानी जा सकती. क्योंकि मंजूरी लेना चार्ज शीट दाखिला प्रक्रिया का हिस्सा नहीं है. साथ ही जांच एजेंसी को मंजूरी से कोई लेना देना नहीं है.
कोर्ट पांच अभियुक्तों की अर्जी पर विचार कर रहा था जो पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की गई थी. उस आदेश में हाईकोर्ट ने इनको डिफॉल्ट बेल पर रिहा करने से इंकार कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से भी स्पष्ट है कि हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रहेगा. ASG संजय जैन ने भी अभियुक्तों की अपील का विरोध करते हुए कहा कि इस बारे में स्थापित कानून है कि ये तभी होता है जब तय समय सीमा में आरोप पत्र यानी चार्जशीट दाखिल न किया गया हो.
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