- जाट नेता के बहाने एक तीर से दो निशाने साधने की फिराक में भाजपा, विधानसभा - निकाय चुनाव में हो चुका है नुकसान | सच्चाईयाँ न्यूज़

सोमवार, 17 जुलाई 2023

जाट नेता के बहाने एक तीर से दो निशाने साधने की फिराक में भाजपा, विधानसभा - निकाय चुनाव में हो चुका है नुकसान

 लोकसभा चुनाव से पहले कुनबा मजबूत करने में जुटी भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल में नजदीकियों की चर्चा जोरों पर है। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे उनके जयंत चौधरी से गठबंधन कर भाजपा उत्तर प्रदेश के साथ पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के जाट वोटरों को रिझाने की फिराक में है।

जाटों के सर्वमान्य नेता रहे चौधरी चरण सिंह और उनके बेटे चौधरी अजित सिंह के कारण समाज का बड़ा तबका खुले दिल से जयंत का समर्थन करता है।

भाजपा में असमंजस भी

आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए यूपी सहित चार राज्यों में जाट समुदाय को साधना बड़ी चुनौती है। पार्टी के पास जाट समाज में ऐसा कोई बड़ा चेहरा नहीं हैं, जिसकी पूरे देश में जाट नेता के रूप स्वीकार्यता हो। ऐसे में जयंत उनके लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं।

लिहाजा पार्टी के शीर्ष नेताओं में एक गुट जयंत से गठबंधन करने की पैरवी कर रहा है। वहीं, भाजपा में ही एक बड़ा गुट जयंत को शामिल करने के पक्ष में नहीं हैं। उसका मानना है कि रालोद से गठबंधन का ज्यादा फायदा नहीं होगा, बल्कि पार्टी को अपनी जीती हुई सीटें गठबंधन में उन्हें देनी पड़ेंगी।

पड़ोसी राज्यों में जाट वोट बना चुनौती

भाजपा ने राजस्थान में जाट समाज के सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर विधानसभा में उपनेता प्रतिपक्ष और बाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह दी। लेकिन इससे जाट समुदाय संतुष्ट नहीं है। राजस्थान में आगामी नवबंर-दिसंबर में विधानसभा चुनाव भी है। राज्य में जाट वोट बैंक को साधना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है।

पार्टी के कई राष्ट्रीय नेताओं का मानना है कि जयंत चौधरी के चेहरे से राजस्थान के जाट वोटों को जोड़ना आसान होगा। उधर, हरियाणा में भी उप मुख्यमंत्री अजय चौटाला और भाजपा के बीच तनातनी चल रही है। ऐसे में भाजपा को वहां भी जाट समाज के बीच मजबूत चेहरे की आवश्यकता है। पंजाब के जाट सिखों को साधना भी चुनौती है। कृषि कानूनों का सबसे ज्यादा विरोध पंजाब और हरियाणा में ही था।

निकाय चुनाव में हुआ आभास

निकाय चुनाव में भाजपा ने भले ही जाट बहुल मेरठ, मथुरा, मुरादाबाद नगर निगम महापौर चुनाव जीत लिया है। लेकिन, मथुरा, शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, बिजनौर, अमरोहा और अलीगढ़ में जाट बहुल क्षेत्रों में नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों में भाजपा को करारी शिकस्त मिली है।

नगर निकाय चुनाव में जाट बहुल सीटों पर बूथवार परिणाम का आकलन करने से स्पष्ट होता है कि जाटों ने भाजपा से दूरी बनाए रखी। उससे पहले खतौली विधानसभा उपचुनाव मे भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा था।

विधानसभा चुनाव में भी हुआ नुकसान

विधानसभा चुनाव 2022 में रालोद ने सपा के गठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था। रालोद ने आठ सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं, पश्चिमी यूपी की जाट बहुल सीटों पर सपा को फायदा और भाजपा को नुकसान हुआ था। आगरा, मथुरा, अलीगढ़, बुलंदशहर, गाजियाबाद, बागपत, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा, संभल, हाथरस लोकसभा क्षेत्रों को जाटों का बाहुल्य है।

2019 लोकसभा चुनाव रालोद, सपा-बसपा के गठबंधन के चलते में संभल, बिजनौर, मुरादाबाद, अमरोहा में भाजपा को नुकसान हुआ था। मुजफ्फरनगर से भाजपा के संजीव बालियान मात्र 6526 वोट और बागपत से भाजपा डॉ. सत्यपाल सिंह 23,502 से ही चुनाव जीते थे।

2009 में था एनडीए से गठबंधन

लोकसभा चुनाव 2009 में रालोद ने एनडीए से गठबंधन कर सात सीटों पर चुनाव लड़ा था। रालोद ने बिजनौर, अमरोहा, बागपत, हाथरस और मथुरा में जीत दर्ज की थी।

जानकारों का मानना है कि यदि 2024 के लिए भी रालोद का गठबंधन हुआ तो पार्टी वही पांच सीटें गठबंधन में मांगेगी। वहीं, भाजपा नेतृत्व बागपत और मथुरा सीट देने पर सहमत हो सकता है। भाजपा के एक पदाधिकारी का कहना है कि रालोद से गठबंधन सीटों के बंटवारे पर ही निर्भर करेगा।

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