- Aditya-L1 से सूर्य की स्टडी है जरूरी, वरना इकोनॉमी को हर दिन हो सकता है इतना नुकसान | सच्चाईयाँ न्यूज़

रविवार, 3 सितंबर 2023

Aditya-L1 से सूर्य की स्टडी है जरूरी, वरना इकोनॉमी को हर दिन हो सकता है इतना नुकसान

Aditya-L1 से सूर्य की स्टडी है जरूरी, वरना इकोनॉमी को हर दिन हो सकता है इतना नुकसान

भारत ने सूरज की स्टडी के लिए अपना पहला स्पेस मिशन ‘आदित्य एल1’ भेज दिया है. सफल लॉन्च के बाद ये अब करीब 125 दिन की यात्रा पर रहेगा और सूर्य से उठने वाले सौर तूफान और लपटों का अध्ययन करेगा.

देखेगा कि दुनिया पर इसका क्या असर होता? लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका एक कनेक्शन कनाडा में 34 साल पहले हुए ब्लैकआउट से भी जुड़ा है, क्योंकि अगर सूरज का अध्ययन नहीं किया जाएगा तो दुनिया की इकोनॉमी को हर दिन अरबों डॉलर का नुकसान होने की संभावना है.

jo ‘आदित्य-एल1’ मिशन स्पेस में रहकर सोलर कोरोना की फिजिक्स और हीटिंग मैनेजमेंट की स्टडी करेगा. इसी के साथ सौर हवाओं की गति और सौर एटमॉसफियर की डायनामिक्स को भी समझेगा. धरती की ओर जब ये सौर हवाएं चलती हैं तो कैसे उनका असर बाकी अन्य गतिविधियों पर पड़ता है. ये समझना ही इसरो के ‘आदित्य-एल1’ मिशन का मुख्य लक्ष्य है.

34 साल पहले क्या हुआ था कनाडा में?

कहानी 1989 की है, तब 10 मार्च 1989 को एस्ट्रोनॉमर्स ने सूरज में एक भयानक विस्फोट को देखा था. इसके कुछ ही घंटों बाद सूरज से अरबों टन गैसों का एक गुब्बारा रिलीज हुआ. ये इतना धमाकेदार था मानों हजारों न्यूक्लियर बम एक साथ फट गए हों. इससे एक सौर तूफान उठा जो कई लाख किलोमीटर की गति से सीधा धरती की ओर बढ़ा.

इस सौर तूफान और लपटों ने शॉर्ट-वेब रेडियो सिगनल्स को बाधित किया और इससे पूरे यूरोप और रूस में रेडियो सिगनल्स जाम हो गए. इसके बाद 12 मार्च की शाम तक सौर प्लाज्मा ( इलेक्ट्रिकली चार्ज पार्टिकल्स) ने धरती की मैग्नेटिक फील्ड पर हमला बोल दिया. इसका असर ये हुआ कि नॉर्वे से दिखने वाली ‘नदर्न लाइट्स’ को लोग फ्लोरिडा और क्यूबा तक से देख सकते थे.

धरती के इस मैग्नेटिक डिस्टर्बेंस ने उत्तरी अमेरिका की जमीन के नीचे इलेक्ट्रिक करेंट तैयार किया. फिर आया वो काला दिन जिसने इतिहास में जगह बनाई. 13 मार्च को तड़के 2 बजकर 44 मिनट पर इस इलेक्ट्रिक करेंट ने कनाडा के क्यूबेक शहर के पावर ग्रिड में एक कमजोरी को पकड़ लिया और महज 2 मिनट में क्यूबेक का पूरा पावर ग्रिड उड़ गया और कनाडा ने अपने इतिहास के सबसे बड़े ‘ब्लैकआउट’ में से एक का सामना किया.

इकोनॉमी को हुआ भारी नुकसान

चूंकि ये वीक डे था, यानी मंगलवार का दिन था. 12 घंटे के इस ब्लैकआउट की वजह से लाखों लोगों ने खुद को अंडरग्राउंड पैडेस्ट्रियन टनल्स, डार्क ऑफिस बिल्डिंग और रुके हुए एलीवेटर्स में अटका पाया. इसने बिजनेस और स्कूल को रोक कर दिया गया और डोरवाल एयरपोर्ट और मोंट्रियल मेट्रो को बंद करना पड़ा.

सिर्फ कनाडा के क्यूबेक ही नहीं बल्कि अमेरिका के कुछ बिजलीघर, न्यूयॉर्क में 150 मेगावाट और न्यू इंग्लैंड पावर पूल को 1410 मेगावाट बिजली का नुकसान उठाना पड़ा. इन सभी वजह से महज 12 घंटे में अरबों डॉलर का नुकसान हुआ.

इकोनॉमी के लिए जरूरी है ‘आदित्य-एल1’ मिशन

सूरज की लपटों की वजह से इस साल अप्रैल में हिंद महासागर के ऊपर भी असर पड़ा. स्पेसवेदर डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक इसने हिंद महासागर के ऊपर थोड़ी देर के लिए शॉर्ट वेब रेडियो फ्रीक्वेंसी के ब्लैकआउट अंजाम दिया. इसलिए भी ‘आदित्य-एल1’ भेजना जरूरी हो गया था.

सौर तूफान से दुनिया की इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई बाधित होने की समस्या रहती है. इसे लेकर अमेरिका ने 2017 के आसपास एक अध्ययन किया. इसके हिसाब से अमेरिका में घटे अधिकतर ब्लैकआउट में धरती का इलेक्ट्रॉनिक मैग्नेटिक फील्ड बिगड़ना वजह पाई गई. अध्ययन में कहा गया कि ये अमेरिका की 66 प्रतिशत जनता को प्रभावित कर सकता है. इतना ही नहीं इससे अमेरिका की अर्थव्यवस्था को हर दिन 42 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.

अगर इस गणना को 2023 के हिसाब से कैलकुलेट करें, तो ये आज की तारीख में अमेरिका को हर रोज 52 अरब डॉलर हो जाएगा. इकोनॉमिक लॉस का कनेक्शन सिर्फ अमेरिका के आधार पर ही इतना बड़ा है, इसके वर्ल्ड इकोनॉमी पर पड़ने वाले असर का अंदाजा भी अभी लगाना मुश्किल है.

एक टिप्पणी भेजें

Whatsapp Button works on Mobile Device only

Start typing and press Enter to search

Do you have any doubts? chat with us on WhatsApp
Hello, How can I help you? ...
Click me to start the chat...