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गुरुवार, 23 मार्च 2023

सच्चाईयाँ न्यूज़:डांग जिले के ,आहवा,वघई,सुबीर और शामगहान में मराठी समुदाय के लोगों द्वारा गुड़ी पक्का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया

डांग जिले के ,आहवा,वघई,सुबीर और शामगहान में मराठी समुदाय के लोगों द्वारा गुड़ी पक्का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया.गुड़ी पड़वा पर्व मराठी लोगों का नया साल है.डांग जिले में भी इस अवसर पर गुड़ी पड़वा के दिन लोगों ने गुड़ी को एक बड़ी डंडी, साड़ी, नीम के पत्ते, हरदा और माला से सजाया और उसे घर के ऊपर बांध दिया। डांग जिले में गुड़ी पड़वा के पर्व पर समुदाय के लोगों ने घरों में अच्छे पकवान बनाकर एक दूसरे को नव वर्ष की बधाई दी. जबकि डांग जिले के गांवों में कुछ जगहों पर गुड़ी पड़वा के त्योहार पर देव काठी यानी छड़ी पर लाल कपड़ा और उस पर मोर पंख बांधकर पूजा की जाती थी। गुड़ी पड़वा को हिन्दू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है, यही कारण है कि हिन्दू धर्म के सभी लोग इसे अलग-अलग तरह से पर्व के रूप में मनाते हैं। सामान्य तौर पर इस दिन हिन्दू परिवारों में गुड़ी का पूजन कर इसे घर के द्वार पर लगाया जाता है और घर के दरवाजों पर आम के पत्तों से बना बंदनवार सजाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह बंदनवार घर में सुख, समृद्धि और खुशि‍यां लाता है। गुड़ी पड़वा के दिन खास तौर से हिन्दू परिवारों में पूरनपोली नामक मीठा व्यंजन बनाने की परंपरा है, जिसे घी और शक्कर के साथ खाया जाता है। वहीं मराठी परिवारों में इस दिन खास तौर से श्रीखंड बनाया जाता है, और अन्य व्यंजनों व पूरी के साथ परोसा जाता है। आंध्रप्रदेश में इस दिन प्रत्येक घर में पच्चड़ी प्रसाद बनाकर वितरित किया जाता है। गुड़ी पड़वा के दिन नीम की पत्त‍ियां खाने का भी विधान है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नीम की कोपलें खाकर गुड़ खाया जाता है। इसे कड़वाहट को मिठास में बदलने का प्रतीक माना जाता है। हिन्दू पंचांग का आरंभ भी गुड़ी पड़वा से ही होता है। कहा जाता है के महान गणितज्ञ- भास्कराचार्य द्वारा इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, मास और वर्ष की गणना कर पंचांग की रचना की गई थी। गुड़ी पड़वा शब्द में गुड़ी का अर्थ होता है विजय पताका और पड़वा प्रतिपदा को कहा जाता है। गुड़ी पड़वा को लेकर यह मान्यता है, कि इस दिन भगवान राम ने दक्षिण के लोगों को बाली के अत्याचार और शासन से मुक्त किया था, जिसकी खुशी के रूप में हर घर में गुड़ी अर्थात विजय पताका फहराई गई। आज भी यह परंपरा महाराष्ट्र और कुछ अन्य स्थानों पर प्रचलित है, जहां हर घर में गुड़ी पड़वा के दिन गुड़ी फहराई जाती है। डांग जिला व डांग के लोगों ने आज गुड़ी पड़वा पर्व हर्षोल्लास से मनाया।

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