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शनिवार, 6 मई 2023

Bombay HC:जीवन के बढ़ते चरण को देखकर बच्चे की कस्टडी का फैसला बदला जा सकता है,HC की फैमिली कोर्ट को सलाह

 बंबई उच्च न्यायालय ने बच्चे की कस्टडी को लेकर एक बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट का कहना है कि कस्टडी को लेकर सख्त नहीं हो सकते हैं। बच्चों की जरूरतों और कल्याण को ध्यान में रखते हुए कभी भी फैसला बदला जा सकता है।बता दें, अदालत 40 वर्षीय एक व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने पूर्व पत्नी के पुनर्विवाह के बाद अपने नाबालिग बेटे के कानूनी अभिभावक होने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति नीला गोखले की एकल पीठ ने गुरुवार यानी 4 मई को दिए आदेश में कहा कि बच्चों की कस्टडी एक संवेदनशील मुद्दा है। जीवन के बढ़ते चरणों में बच्चों को देखभाल, सराहना और स्नेह चाहिए होता है।

यह है मामला

याचिकाकर्ता के अनुसार, साल 2017 में जब दंपत्ति ने तलाक लिया था, तो एक शर्त रखी गई थी कि अगर दोनों में से एक ने दोबारा शादी की तो दूसरे को बच्चे की पूरी कस्टडी मिल जाएगी। इस पर उसकी पूर्व पत्नी सहमति जताई थी। अब जब उनकी पत्नी दूसरी शादी कर रही हैं तो उन्होंने बच्चे की पूरी कस्टडी मांगी। इसके लिए उन्होंने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत नाबालिग बच्चे की कस्टडी दोनों माता-पिता को देने के पहले के आदेश में संशोधन की मांग की थी।

फैमिली कोर्ट ने किया था खारिज

हालांकि, फैमिली कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था। कोर्ट का कहना था कि आवेदन अभिभावक और वार्ड अधिनियम के प्रावधानों के तहत दायर करना चाहिए था न कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत। वहीं शख्स ने कहा था कि वह केवल तलाक की कार्यवाही में दायर सहमति शर्तों में संशोधन की मांग कर रहा है।

HC ने दिया नया आदेश

अब उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है। उसने नाबालिग बच्चे की कस्टडी से संबंधित सहमति शर्तों में संशोधन की मांग करने वाले व्यक्ति के आवेदन पर नए सिरे से सुनवाई करने का निर्देश दिया है।

बेहद संवेदनशील मुद्दा

न्यायमूर्ति गोखले ने आदेश में कहा कि फैमिली कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला भी सही है, लेकिन बच्चों की कस्टडी का मामला बेहद संवेदनशील मुद्दा है, इसे तकनीकी रूप से नहीं सुलझाया जा सकता है। गोखले ने कहा कि जीवन के बढ़ते चरणों में बच्चों का ध्यान रखना जरूरी होता है। यही कारण है कि कस्टडी के आदेश को हमेशा वादकालीन आदेश माना जाता है। इसे कठोर और अंतिम नहीं बनाया जा सकता है।

अदालत ने आदेश में कहा कि जीवन के विभिन्न चरणों में बच्चे की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए कस्टडी का फैसला देना चाहिए।

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