मेरठ,लोकतंत्र के लिए आपातकाल काला दिन था। सरकार के खिलाफ बोलने वालों को जबरन जेल भेजा जा रहा था। इसके बाद भी लोकतंत्र सेनानियों का हौसला नहीं डिगा। बुजुर्ग, युवा, महिला, छात्र सभी को जेल के अंदर डाल दिया गया था।
इसके बाद भी किसी ने उफ तक नहीं की और जुल्मों का बहादुरी से डटकर मुकाबला किया।
लोकतंत्र के ऊपर 25 जून 1975 को आपातकाल का कलंक थोप दिया गया था। गांव-गांव शहर-शहर में सरकार के खिलाफ बोलने वालों की पुलिस ने धरपकड़ तेज कर दी। उस समय मेरठ में सभी वर्गों के लोग आपातकाल के खिलाफ आवाज उठा रहे थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता और कैंट विधायक अमित अग्रवाल बताते हैं कि आपातकाल के समय वह मेरठ कॉलेज में कानून के छात्र थे और उनकी उम्र 21 वर्ष थी। आपातकाल में उन्हें भी जेल भेज दिया गया। पैरोल पर छूटने के दो माह बाद उनके दोबारा वारंट जारी हो गए।
आंदोलन में महिलाओं का दस्ता भी पीछे नहीं रहा
आपातकाल के खिलाफ आंदोलन में महिलाएं भी पीछे नहीं रही। मेरठ के सिविल लाइन थाना क्षेत्र के मानसरोवर में किराए पर रहने वाली कृष्णकांता तोमर अपने पांच वर्षीय बेटे धर्मेंद्र तोमर और अपनी मकान मालकिन कृष्णा वत्स के साथ नारेबाजी करती हुई बेगमपुल पहुंच गई। वहां लालकुर्ती थाने पहुंचने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। एक महीने बाद कृष्णकांता तोमर और कृष्णा वत्स की रिहाई हुई।
लोकतंत्र सेनानियों का केंद्र बन गई थी रेडियो की दुकान
पल्हैड़ा निवासी समाजसेवी शीलेंद्र चौहान बताते हैं कि उनकी बेगमपुल पर रेडियो रिपेयरिंग की दुकान थी। इस दुकान पर लोकतंत्र सेनानियों का तांता लगा रहता था। सत्याग्रह की सारी गतिविधियां इस दुकान से चलती थी। नौ दिसम्बर 1975 को उनके छोटे भाई जनमेजय चौहान को जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें बहुत यातनाएं दी गई। छह महीने बाद उन्हें जमानत मिली। 75 वर्षीय लोकतंत्र सेनानी जनमेजय चौहान इस समय बोलने की स्थिति में नहीं हैं।
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